स्वामीनॉमिक्स- ट्रंप 2.0 से आर्थिक मोर्चे पर खड़ी होने वाली हैं नई चुनौतियां, जानें भारत को किससे बचना चाहिए

नई दिल्ली: डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में जीत हासिल की है। भारत सहित पूरी दुनिया के लिए इसके आर्थिक परिणाम गंभीर हो सकते हैं। इनमें उच्च संरक्षणवादी टैरिफ, धीमी वैश्विक वृद्धि, उच्च वैश्विक महंगाई, मजबूत डॉलर (जो उभरते बाजारों से

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नई दिल्ली: डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में जीत हासिल की है। भारत सहित पूरी दुनिया के लिए इसके आर्थिक परिणाम गंभीर हो सकते हैं। इनमें उच्च संरक्षणवादी टैरिफ, धीमी वैश्विक वृद्धि, उच्च वैश्विक महंगाई, मजबूत डॉलर (जो उभरते बाजारों से पैसा चूसता है) और व्यापार युद्ध शामिल हैं। इसके प्रभाव छोटे से शुरू होने की संभावना है, लेकिन समय के साथ तेजी से बढ़ेंगे। भारत को ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिए लचीलेपन की आवश्यकता है। उसे ट्रंप के उच्च टैरिफ के खिलाफ कठोर भारतीय टैरिफ के साथ जवाबी कार्रवाई करने से बचना चाहिए जैसा कि उसने ट्रंप के पहले कार्यकाल में किया था। वह एक महान अमेरिका के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ है और वह इससे भी अधिक जवाबी कार्रवाई के साथ जवाब देंगे। इससे व्यापार युद्ध के बढ़ने का जोखिम है जिनसे हमें सावधान रहना चाहिए।

अमेरिका में चेक्स एंड बेलेंसेज हैं जो आमतौर पर राष्ट्रपति के क्रांतिकारी कार्रवाई के दायरे को सीमित करते हैं। लेकिन उनकी रिपब्लिकन पार्टी ने सीनेट में बहुमत हासिल कर लिया है और प्रतिनिधि सभा में भी जीतने की संभावना है। यह उनके एजेंडे के लिए एक मजबूत विधायी समर्थन प्रदान करेगा।
उन्होंने अमेरिकी प्रशासन में हजारों लोगों को बर्खास्त करने और उनकी जगह अपने समर्थकों को लाने के लिए एक तैयार सूची लाने का वादा किया है। ट्रंप ने कहा है कि वे उन अभियोक्ताओं को बर्खास्त करेंगे जिन्होंने जो बिडेन द्वारा उनके खिलाफ अभियोग में भाग लिया था। इस प्रतिशोध का उद्देश्य प्रशासन में सभी असहमति को दबाना होगा।

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आयात पर टैरिफ

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही रिपब्लिकन समर्थक न्यायाधीशों का बहुमत है और उनके दूसरे कार्यकाल में यह बहुमत बढ़ सकता है। संक्षेप में, पारंपरिक अमेरिकी चेक्स एंड बैलेंसेज एक आश्चर्यजनक सीमा तक कमजोर हो जाएंगे, जिससे ट्रंप अपने पहले कार्यकाल की तुलना में कहीं अधिक सख्त हो जाएंगे। उन्होंने अक्सर कहा है कि वह अमेरिका में सभी तरह के आयात पर 10%, चीन से आयात पर 60% और चीनी कारों पर 100% का टैरिफ लगाएंगे। लेकिन उन्होंने इन तीन दरों को 20%, 100% और 1,000% तक बढ़ाने की धमकी भी दी है। यूरोपीय संघ और उनके एशियाई सहयोगियों द्वारा भी जवाबी कार्रवाई की जाएगी।

1930 के दशक की महामंदी व्यापार युद्धों के कारण और भी बदतर हो गई थी। इसमें देशों ने निर्यात बढ़ाने के साथ-साथ आयात को कम करने के लिए उच्च आयात शुल्क और प्रतिस्पर्धी अवमूल्यन का सहारा लिया था। लेकिन किसी भी देश का निर्यात दूसरे देशों का आयात होता है, इसलिए जब हर देश आयात पर अंकुश लगाने की कोशिश करता है, तो इसका नतीजा यह होता है कि उनके सभी निर्यात में भी भारी गिरावट आती है। व्यापार युद्धों ने महामंदी से पहले से ही प्रभावित विश्व विकास को कम कर दिया था। दुनिया को इस तरह के व्यापार युद्धों की पुनरावृत्ति से बचना चाहिए।

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महंगाई बढ़ने की आशंका

ट्रंप द्वारा सभी देशों पर लगाया गया 10% टैरिफ अमेरिका में कीमतों को 3% तक बढ़ा सकता है। टैरिफ युद्ध होने पर कीमत इससे भी कहीं ज्यादा अधिक हो सकती हैं। उच्च टैरिफ घरेलू उत्पादकों को लाभ पहुंचाएंगे, लेकिन उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाएंगे। इससे मतदाता निराश होंगे। उन्होंने सोचा था कि ट्रंपको चुनकर वे डेमोक्रेट्स को चार साल की महंगाई के लिए दंडित करेंगे। इसके बजाय, महंगाई उन्हें फिर से प्रभावित करेगी।

ट्रंप सभी अवैध अप्रवासियों को देश से निकालना चाहते हैं, जो प्रशासनिक रूप से कठिन है। अगर वह अपनी मुहिम में सफल होते हैं तो इससे देश में श्रम की कमी पैदा होगी जो महंगाई की स्थिति को और खराब कर देगा। इस महंगाई से निपटने के लिए फेड को ब्याज दरें बढ़ानी होंगी। महंगाई में गिरावट के कारण पिछले सप्ताह इसने दूसरी बार ब्याज दरों में कटौती की है। लेकिन ट्रंप की जीत की प्रत्याशा में दीर्घकालिक अमेरिकी ब्याज दरें बढ़ रही हैं। 10-वर्षीय ट्रेजरी अब 4.3% का आकर्षक रिटर्न दे रही हैं। वैश्विक निवेशक अन्य बाजारों से पैसा निकालकर अमेरिकी ट्रेजरी में निवेश करेंगे, जिससे प्रतिद्वंद्वी मुद्राएँ कमजोर होंगी और डॉलर मजबूत होगा। यदि ट्रंप के व्यापार युद्ध महंगाई को बढ़ाते हैं, तो फेड को फिर से ब्याज दरें बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जिससे वैश्विक धन आकर्षित होगा और डॉलर मजबूत होगा।

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डॉलर की मजबूती

ट्रंप को मजबूत डॉलर से नफरत है, जो अमेरिकी निर्यात को मुश्किल बनाता है, लेकिन यही उन्हें मिलेगा। उन्हें टैरिफ कई समस्याओं के समाधान के रूप में पसंद हैं, जिसमें अच्छी नौकरियां और अमेरिकी विनिर्माण का पुनरुद्धार शामिल है। उन्होंने विशेषज्ञों के विश्लेषण को खारिज कर दिया, जिसमें दिखाया गया था कि उनके पहले कार्यकाल में स्टील और एल्युमीनियम पर टैरिफ बढ़ाने से नए स्टील और एल्युमीनियम संयंत्र बनाने में विफलता मिली। उन्होंने महंगाई की आशंकाओं को निराधार बताया।

ट्रंपने व्यापक कर कटौती का भी वादा किया है। करदाताओं को अच्छा लगेगा, लेकिन राजकोषीय घाटा और भी बढ़ जाएगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी। ट्रंप की रूस के पुतिन, उत्तर कोरिया के किम और भारत के मोदी के साथ अच्छी केमिस्ट्री है। लेकिन इससे व्यापार पर उनकी सख्ती कम नहीं होगी। उन्होंने भारत को एक अनुचित व्यापारी और टैरिफ मैनिपुलेटर के रूप में आड़े हाथों लिया है। खासकर मोटरसाइकिलों पर भारत के उच्च टैरिफ पर नाराजगी व्यक्त की है। वह भारत को और अधिक हथियार बेचने में खुशी महसूस करेंगे, लेकिन भारत को सभी देशों के लिए प्रस्तावित 10-20% टैरिफ से बचाने की संभावना नहीं है।

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भारत पर असर

भले ही व्यापार युद्ध शांत हो जाएं, लेकिन विश्व व्यापार और जीडीपी में मंदी भारत में विकास को भी प्रभावित करेगी। अमेरिकी अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत है और कुछ समय के लिए नीतिगत त्रुटियों को सहन कर सकती है। ट्रंप की नीतियों से अल्पकालिक लाभ भी मिल सकता है। लेकिन जब तक उनके चार साल पूरे होंगे, तब तक बढ़ती महंगाई और धीमी वृद्धि ट्रंपवाद की चमक को कम कर सकती है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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